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Saturday, 23 June 2018

स्मृति : राजकपूर, कादंबरी और आनंद रघुनंदन

एक शायर ने कहा है- आज यह बेजार है तो कल यहीं बाजार होगी. इसीलिए कहा जाता है कि घूरे के दिन भी फिरते हैं और सभ्यताएं चरम पर पहुंचकर फिर घूरे में तब्दील हो जाती हैं.

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